सोमवार, 21 दिसंबर 2009
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
सविता अग्निहोत्री का निधन
‘कुछ बातें अनकही’ लोकार्पित
अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री महेश श्रीवास्तव ने श्री रायसरा को संवेदनशील गीतकार निरूपित किया। उन्होंने कहा कि श्री रायसरा ने ढाई आखर को आत्मसात कर गीतरचना की है। मुख्यअतिथि श्री विद्यानन्दन राजीव ने कहा कि इन दिनों गीत और ग़ज़ल लिखने वालों की होड़ लगी हुई है। ऐसे में श्री रायसरा अपनी अलग पहचान बनाये हुये हैं। संग्रह पर समीक्षात्मक टिप्पणी वरिष्ठ ग़ज़लकार श्री महेश अग्रवाल ने की।
आरम्भ में श्री अशोक निर्मल ने स्वागत उद्बोधन दिया। संचालन संग्रहालय राजुरकर राज ने और आभार श्री राजेन्द्र जोशी ने व्यक्त किया।
ग़ज़ल, गीत, कविता कार्यशाला
27 से 30 मई 2010
संयोजक: हिमाक्षरा राष्ट्रीय साहित्य परिषद्
काव्य सर्जनात्कता के मार्गदर्शन हेतु हिमाक्षरा राष्ट्रीय साहित्य परिषद द्वारा चार दिवसीय आवासीय कार्यशाला का आयोजन दिनांक 27, 28, 29 एवं 30 मई 2010 को किया जा रहा है। कार्यशाला झीलों की नगरी भोपाल में दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के सौजन्य से संग्रहालय के सभागार में आयोजित की जायेगी। जिसमें केवल 50 प्रतिभागी सम्मिलित हो सकेंगे।
अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें:-
डाॅ. इसरार ‘गुणेश’,
संयोजक
संस्थापक अध्यक्ष, हिमाक्षरा
मो. 09425036096 फोन: 07482 222496
युवा कथाकार पुरस्कार
ग़ज़लः दुष्यन्त के बाद
प्रकाशनाधीन इस चैथे खंड में प्रकाशनार्थ 8-10 पंसदीदा ग़ज़लें आमन्त्रित हैं। ग़ज़लों के साथ संक्षिप्त परिचय (जन्मतिथि, स्थान सहित), फोटो, पता लिखा पोस्टकार्ड व टिकट लगा एक लिफ़ाफ़ा एवं अनुमति-पत्र भरकर यथाशीघ्र श्री दीक्षित दनकौरी के पते पर भेज सकते है। विज्ञप्ति के अनुसार प्रकाशनोपरान्त किसी भी प्रकार का मानदेय या निःशुल्क पुस्तक देने की व्यवस्था नहीं है। शामिल ग़ज़लकार को पुस्तक के अंकित मूल्य पर 50 प्रतिशत की छूट पर अधिकतम पांच प्रतियां उपलब्ध होंगी। ग़ज़लें भेजने के लिए पता है: ‘श्री दीक्षित दनकौरी, (संपादक- ‘ग़ज़ल.... दुष्यन्त के बाद’), 76, डी.डी.ए. फ्लैट्स, मानसरोवर पार्क, दिल्ली- 110032
फोन - (011) 22586409, मो. 09899172697
शहरयार को गंगाधर अवार्ड
बुंदेली साहित्यकारों का परिचय ग्रंथ प्रकाशित होगा
शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
डाॅ. शर्मा का देहावसान
कुँवरपाल सिंह नहीं रहे
नन्दन जी अस्पताल से लौटे
डाॅ. श्रोत्रिय को हृदयाघात
राजेन्द्र अनुरागी के नाम पर सड़क
डिपो चैराहे से दीनदयाल परिसर (प्रदेश भाजपा कार्यालय) तक जाने वाले लिंक रोड नम्बर 2 का विशेष महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है कि जहाँ से अनुरागी मार्ग का आरम्भ हो रहा है, वह चैराहा दुष्यन्त मार्ग से जुड़ हुआ है। आगे जाकर यह शरद जोशी मार्ग के निकट से होकर निकलता है।
मंगलवार, 3 नवंबर 2009
नरेन्द्र दीपक को हृदयाघात
मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद का गठन
(दैनिक भास्कर में छपा)
डाॅ. अशोक चक्रधर केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष नियुक्त
श्री चक्रधर से दूरभाष पर सम्पर्क किया, तो उन्होंने कहा कि अब बड़े फलक पर काम करने का अवसर मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि श्री चक्रधर लगभग तीस वर्षों तक हिन्दी अध्यापन करते रहे। उन्होंने हास्य-व्यंग्य को मंच पर अत्यन्त गम्भीरतापूर्वक प्रतिष्ठित करने के साथ ही मंच को एक अलग तरह की गरिमा प्रदान की। हास्य-व्यंग्य की पुस्तकों के साथ ही उनके कुछ गम्भीर पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही आधुनिकतम तकनीक कम्प्यूटर के जरिये भी उन्होंने हिन्दी के लिए अनेक काम किये, जिनमें यूनीकोड को बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए उपलब्ध करवाया है। वे कई साहित्यकारों को लैपटाॅप उपहार में दे चुके हैं। श्री चक्रधर को दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा गत वर्ष दुष्यन्त कुमार अलंकरण से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही उन्हें अनेक सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं।
डाॅ. सूरज पालीवाल का पता बदला
दद्दा की दरी दुष्यन्त के घर, संग्रहालय को मिली दादा माखनलाल चतुर्वेदी की ऐतिहासिक दरी
यह दरी दद्दा के परिजनों ने राष्ट्रीय स्तर पर चले अभियान ‘जाॅय आॅफ गीविंग’ के तहत संग्रहालय को भेंट की। इस आत्मीय आयोजन में दोनों रचनाकारों के व्यक्तित्व के कई जाने-अनजाने पहलू उजागर हुए। इस मौके पर संग्रहालय परिसर में दादा के भतीजे प्रमोद चतुर्वेदी, ‘जाॅय आॅफ गीविंग’ अभियान के तहत यह दरी पाने वाली संस्था स्पंदन के सीमा-प्रकाश तथा इस अभियान के मीडिया पार्टनर ‘नवदुनिया’ के स्थानीय संपादक गिरीश उपाध्याय मौजूद थे। श्री प्रकाश ने बताया कि श्री चतुर्वेदी ने दरी यह कहते हुए प्रदान की थी कि इसका बेहतर इस्तेमाल किया जाए। जब संग्रहालय को इसका पता चला तो उसने इसे अपने यहाँ सुरक्षित रखने का निर्णय किया।
श्री प्रमोद चतुर्वेदी ने दद्दा के साथ बिताए पलों को याद करते हुए कई अनुभव सुनाए। दद्दा उन्हें मुन्ना बाबू कहते थे और हर कार्यक्रम में साथ ले जाते थे। खण्डवा में पोलिटेक्निक के उद्घाटन के समय तो दद्दा के साथ केन्द्रीय मंत्री हुमायूँ कबीर प्रमोदजी को लेने उनके प्राथमिक स्कूल गए थे। दद्दा से मिलने कई क्रांतिकारी और लेखक खंडवा आते थेे। एक दिन राममनोहर लोहिया भी खंडवा पहुंचे और मुलाकात के बाद दद्दा के साथ फोटो खिंचवाने की इच्छा जताई, लेकिन दुर्भाग्य था कि तमाम प्रयासों के बावजूद उस दिन शहर को कोई फोटोग्राफर इस अविस्मरणीय क्षण को कैमरे में कैद करने के लिए उपलब्ध नहीं हो सका।
साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने बताया कि छितगाँव में उनके पैतृक निवास पर ही दद्दा का बचपन गुजरा। श्री जोशी ने वहाँ के घर आँगन में बीती कई घटनाओं को याद किया।
नवदुनिया के स्थानीय सम्पादक श्री गिरिश उपाध्याय ने कहा कि यह देने का नहीं बल्कि छीन लेने का जमाना है। ऐसे में कोई देने की बात करता है तो सुखकर लगता है। ऐसे स्मृति चिन्ह हमें अपने समृद्ध अतीत से जोड़ते हैं। इन्हीं स्मृतियों के सहारे हम भविष्य को सँवार सकते हैं। इसलिए महापुरुषों की स्मृति से जुड़ी जो चीजें सहेजी जा सकती हैं, उन्हें सहेजा जाना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए संग्रहालय के संस्थापक निदेशक राजुरकर राज ने संग्रहालय के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने आग्रह किया कि साहित्यिकपुरखों की धरोहर जहाँ से भी प्राप्त हो, उसे संग्रहालय सहेजने का प्रयत्न करेगा। उन्होंने आव्हान किया कि ऐसी धरोहर संग्रहालय को उपलब्ध करवायें। ऐसा कर हम अपना अतीत सहेज पाएंगे। प्रारम्भ में श्री नरेन्द्र दीपक, श्री शिवकुमार अर्चन और श्री विनोद रायसरा ने अतिथियों का स्वागत किया।
नवदुनिया में ऐसा छपा
जलज को पुत्र शोक
ज्योति व्यास को भ्रातृ-शोक
उनके परिवार में पत्नी के साथ ही दो बेटे और एक बेटी हैं। डाॅ. ज्योति व्यास का पता ‘मेहेर बाबा काॅलोनी, डेंटल कालेज के सामने, एसआरपीई कैम्प, अमरावती’ है। फोन 0721-2551122 एवं चलितवार्ता 09423123112 है।
जवाहर कर्नावट को मातृ-शोक
पूजा येरपुड़े को पितृ शोक
मुन्नूजी नहीं रहे

भोपाल। दुष्यन्त कुमार के इकलौते अनुज एवं हिन्दी के सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो. प्रेमनारायण त्यागी का 24 अक्टूबर की सुबह देहावसान हो गया। वे लगभग 67 वर्ष के थे। भदभदा विश्रामघाट पर अनेक साहित्यिकारों, बुद्धिजीवियों और राजनीतिज्ञों ने उन्हें अन्तिम विदा दी। दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय ने प्रो. प्रेम त्यागी के निधन को अपनी पारिवारिक क्षति बताया है। उल्लेखनीय है कि दुष्यन्त कुमार ने अपनी सर्वाधिक लोकप्रिय कृति ‘साये में धूप’ अपने प्रिय अनुज ‘मुन्नूजी’ अर्थात प्रेमनारायण त्यागी को समर्पित की थी।
बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
उपन्यासकार आर.के.नारायण पर डाक टिकट जारी
सुखी होने के लिए सम्पन्न होना अनिवार्य नहीं। इस बात को आर.के.नारायण ने उपन्यास में बखूबी चित्रित किया था। उन्होंने कहा कि उपन्यास पर दूरदर्शन में धारावाहिक प्रसारित किया गया था। इसके निर्देशन का दायित्व मिलने पर उनके पति अभिनेता शंकर नाग फूले नहीं समाए थे। ऐसे लेखक की स्मृति में डाक विभाग ने टिकट जारी कर उनको सम्मानित किया है। धारावाहिक में स्वामी का रोल निभाने वाले बाल कलाकार मंजूनाथ नायकर ने कहा कि उनको कन्नड़ फिल्मों व दूरदर्शन धारावाहिकों की भूमिकाओं के लिए अब भी याद किया जाता है। इसका श्रेय दिवंगत अभिनेता शंकर नाग को है। लेखक व चिंतक मत्तूर कृष्णमूर्ति ने कहा कि डाक विभाग ने नारायण पर टिकट जारी करके उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया। चीफ पोस्ट मास्टर जनरल आरपी राजन ने कहा कि डाक विभाग ने आर.के. नारायण के पांच रुपए मूल्य के चार मिलियन टिकटों का मुद्रण किया है।
दुष्यन्त संग्रहालय में रखी जायेगी राष्ट्रकवि की दरी

भोपाल। देने में जो आनंद है, वो पाने में कहाँ? जीवन का यह विशिष्ट ज्ञान कई लोगों ने सहज ही प्राप्त कर लिया। पूरे एक हफ्ते चले जाॅय आॅफ गिविंग अभियान में लोगों ने अनुपयोगी सामान दे कर कई जरूरतमंदों को खुश होने की वजह दे दी। इस अभियान के तहत खंडवा में दादा माखनलाल चतुर्वेदी की वह दरी भी मिली, जिसका उन्होंने बरसों उपयोग किया था।
यह जानकारी संस्था गंूँज के ‘जाॅय आॅफ गिविंग वीक’ का संचालन करने वाली संस्थाओं स्पंदन, अहम भूमिका और विकास संवाद के सदस्यों प्रकाश, सीमा, सुब्रत गोस्वामी, योगेश वैद्य, सचिन और रश्मि जैन ने दी। चर्चा के दौरान सभी ने इस सप्ताह के दौरान मिले अनुभवों को साझा किया। स्पन्दन के प्रकाश ने बताया कि खंडवा में एक युवती निलोफर की पहल के बाद मुस्लिम परिवारों ने 150 ड्रेसेज को धोकर व प्रेसकर संस्था को एक विशिष्ट दरी भी मिली। यह दादा माखनलाल चतुर्वेदी के भतीजे प्रमोद चतुर्वेदी ने दी है। यह दरी माखनलालजी ने बरसों उपयोग की। इसी दरी पर उनके साथ कई बड़े नेता और संगीतकारों की बैठकें हुई हैं। संस्था इस दरी को दुष्यन्त कुमार पाण्डुलिपि संग्रहालय को भेंट करेगी।
गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009
कैंसर भी रोक न पाया कलम के सिपाही को
श्री आरिफ उन पत्रकारों में से हैं जिन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में हिस्सेदारी की बल्कि भोपाल रियासत के भारत में विलय के लिए हुए आंदोलन में भी भाग लिया और जेल गए। उनमें खुद्दारी और वतनपरस्ती का जज्बा इतना गहरा है कि स्वाधीनता सेनानी के रूप में किसी पेशंन या फायदे के लिए वह आगे नहीं आए। हिंदी, उर्द, अरबी, फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत के जानकार आरिफ जिंदगी की मुश्किलों से दो चार होते रहे लेकिन कलम की इज्जत को कभी दांव पर नहीं लगाया। कैंसर की बीमारी व गले की तकलीफ की वजह से अब उनके मुंह से लफ्ज भी बुमुश्किल निकल पाते हैं। भोपाल के विलय के आंदोलन के संबंध में जब उनसे भोपाल रेलवे स्टेशन पर तिरंगा फहराए जाने के संबंध में पूछा गया तो उनके मूंह से शब्द तो बुमुश्किल निकल पाए लेकिन हाथों के इशारे से उस वक्त के जज्बे को यह जरूर बताया। श्री आरिफ ने उर्दू मेंप्रदेश के इतिहास सहित कई किताबें लिखी हैं और इन दिनों भोपाल की राजनीतिक गतिविधियों व समाजिक बदलाव पर उनकी किताब ‘यादों की बाजियाफ्त’ पूरी होने के करीब है।
जिंदगी भर कलम को सहेजाः भोपाल पत्रकारिता संघ के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष श्री आरिफ जीवन भर अपनी कलम को ही सहेजते रहे। मुश्किलों में बराबर उनकी हमकदम रही पत्नी भी एक बार वह कुछ इस कदर नाराज हुईं कि कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों को फाड़ दिया। लेकिन जीवन संगिनी की इस नाराजगी को भी वह हंसते- हंसते झेल गए।
इलाज की सख्त जरुरतः जानलेवा बीमारी की गिरफ्त में होने के बावजूद वह अपनी किताब को लेकर फिक्रमंद हैं। श्री आरिफ का उस तरह से इलाज भी नहीं हो पा रहा है जिसकी जरूरत हैं, लेकिन इसकी चिंता उनके चेहरे पर दिखाई नहीं देती।
(नवदुनिया 6/10/09)
गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009
भित्ती पत्रिका पर दुष्यन्त कुमार की कविता
दुष्यन्त कुमार की जयन्ती 27 सितम्बर (जन्मपत्रिका के अनुसार) की पूर्व सन्ध्या पर दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय की भित्ती पत्रिका पर कविता ‘चुनाव परिणाम: एक प्रतिक्रिया’ का अनावरण सुविख्यात कवि श्री अशोक चक्रधर ने किया। इस अवसर पर संग्रहालय पदाधिकारियों के साथ ही दुष्यन्त कुमार के पुत्र श्री आलोक त्यागी एवं स्माइल (दिल्ली) के अध्यक्ष श्री राजीव श्रीवास्तव भी उपस्थित थे।
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
दुष्यन्त कुमार पर डाक टिकट जारी

मध्यप्रदेश के राज्यपाल महामहिम रामेश्वर ठाकुर ने 27 सितम्बर 2009 को हिन्दी के प्रथम ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार पर स्मारक डाक टिकट का लोकार्पण किया।
इस अवसर पर आयोजित समारोह में बोलते हुए राज्यपाल ने दुष्यन्त कुमार की कविताओं और ग़ज़लों को आम लोगों की अभिव्यक्ति बताते हुए उन्हें एक महान कवि, शायर के रूप में याद किया। ‘दुष्यन्त रचनावली’ के सम्पादक डाॅ. विजय बहादुर सिंह ने 1974-’75 के राजनैतिक घटनाक्रम को याद करते हुए उस दौर में दुष्यन्त के मुखर अन्दाज़ की चर्चा की। राज्यपाल ने स्मारक डाकटिकट जब दुष्यन्त कुमार की पत्नी राजेश्वरी दुष्यन्त कुमार को सौंपा, तब तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूँज उठा। इस विशेष डाक टिकट के मूल प्रस्तावक एवं प्रसिद्ध लेखक स्तम्भकार तथा समीक्षक राजीव श्रीवास्तव ने इस दिशा में किये गये अपने तीन साल के प्रयासों का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह प्रस्ताव सरकार के पास 2006 में भेजा गया था। इसके पूर्व कथाकार कमलेश्वर के सुझाव पर उन्होंने नागार्जुन, धर्मवीर भारती, फणीश्वरनाथ रेणु और मोहन राकेश पर डाक टिकट का प्रस्ताव भेजा था, जो अभी भी विचाराधीन है।

दुष्यन्त कुमार के बेहद करीबी रहे उनके मित्र एवं सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और लेखक डाॅ. धनंजय वर्मा ने अपने सम्बोधन में दुष्यन्त की रचनाओं को साहस और हौसले की अपूर्व मिसाल बताते हुए उन्हें सही अर्थों में आम जनमानस का शायर बताया।
धन्यवाद ज्ञापन देते हुए दुष्यन्त कुमार के पुत्र आलोक त्यागी ने सभी का हृदय से

सोसायटी आॅफ म्यूज़िक, इन्नोवेटिव लिट्रेचर एण्ड इमोशंस (स्माइल), नई दिल्ली तथा सप्रे संग्रहालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस समारोह में डाक विभाग के मध्यप्रदेश डाक परिमण्डल के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल, वरिष्ठ अधिकारीगण सहित शहर के गणमान्य व्यक्तियों तथा नई दिल्ली, मुम्बई एवं दूरदराज से भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। स्मारक डाकटिकट का यह दिन दुष्यन्त कुमार के चाहने वालों को उनके जन्मदिवस के रूप में सदैव याद रहेगा।
प्रस्तुति: संगीता राजुरकर
सहायक निदेशक
शुक्रवार, 25 सितंबर 2009
अलका रिसबुड की पुस्तकें प्रकाशित
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
मर्यादा टूटी तो बढ़ जाएँगे व्यक्तिगत हमले : कमला प्रसाद
पहले प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह के बारे में बात करें। इस आयोजन में प्रलेस- जलेस और जसम के अलावा अन्य महत्वपूर्ण लेखकों को आमंत्रित किया गया था। संस्थान की ओर से भेजे गए पहले निमंत्रण पत्र में वे नाम थे, जिन्हें आमंत्रण भेजा गया था। दूसरे और आखिरी निमंत्रण पत्र में वे नाम थे, जिन्होंने आने की स्वीकृति दी थी। पूछने पर ज्ञात हुआ कि जिनकी स्वीकृति नहीं मिली,उन्हें छोड़ दिया गया। जहाँ तक प्रमोद वर्मा का सावल है- वे माक्र्सवादी और मुक्तिबोध तथा परसाई के साथी थे। वे प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष मंडल में रहे हैं। छत्तीसगढ़ उनकी कर्मभूमि रही है। इसीलिए बहुत से लेखकों से उनके वैचारिक और पारिवारिक रिश्ते थे। विश्वरंजन तब उसी क्षेत्र में पदस्थ होने के कारण प्रमोद जी की मित्र मंडली में थे। प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान बना तो- उसमें रूचि से वे सहयोगी बने। छत्तीसगढ़ के अनेक लेखकों के साथ आजकल वे इसके अयक्ष हैं। निर्णय का अधिकार अकेले उन्हें ही नहीं है। पृष्ठभूमि के रूप में इसे जानना जरूरी है। इस कार्यक्रम की घोषणा हुई- तो मैंन छत्तीसगढ़ प्रलेस के साथियों से पूछा कि क्या स्थिति है। छत्तीसगढ़ के साथियों ने सलाह दी कि प्रमोद वर्मा पर कार्यक्रम प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की ओर से हैं। सरकारी अनुदान नहीं है, इसीलिए आना चाहिए। मैंनें स्वीकृति देने वाले लेखकों में अनेक वैचारिक साथियों और संगठनों में शामिल लेखकों के नाम देखे तो जाना तय किया। समारोह में आने वालों में छत्तीसगढ़ के महतवपूर्ण लेखकों के अलावा खगेन्द्र ठाकुर, अशोक वाजपेयी, चन्द्रकांत देवताले, शिवकुमार मिश्र, कृष्ण मोहन, प्रभाकर श्रोत्रिय जैसे प्रमुख थे। कृष्ण मोहन और भगवान सिंह को आलोचना पुरस्कार भी दिया गया था। अच्छी बात यह हुई कि प्रमोद वर्मा समग्र का प्रकाशन हुआ।
कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री और कुछ नेताओं के आने तथा विवादास्पद वक्तव्य देने पर लेखकों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई- जिसका आक्रामक उत्तर लोगों ने अपने- अपने वक्तव्य में दिया। पूरे आयोजन में प्रमोद वर्मा की विचारधारा- ‘माक्र्सवाद’ बहस का आधार बनी रही। इसी दौरान कहीं से आपसी चर्चा में सुनाई पड़ा कि एक मित्र लेखक ने ‘पब्लिक एजेण्डा’ में विश्वरंजन अर्थात डीजीपी छत्तीसगढ़ के सलवा जुडूम के समर्थन और नक्सलपंथियों के विरोध में छपे इंटरव्यू को मुद्दा बनाकर कार्यक्रम में शामिल होना स्थगित किया है। उस समय तक लोगों ने ‘पब्लिक एजेण्डा’ का इंटरव्यू नहीं देखा था। इसके अलावा सीधे भाजपा शासित सरकारी कार्यक्रम न होने के कारण लोगो आए थे। उन्हें पहले से पता था कि सलवा जुडूम भाजपा सरकार के एजेण्डे में है। आमंत्रित लेखकों ने प्रमोद वर्मा स्मृति के पूरे अयोजन को लेकर कुछ आपत्तियाँ दर्ज कराईं। संस्थान के साथियों को परामर्श दिया गया कि इसे हमेशा सत्ता के प्रमाण से अलग रखा जाए।
छत्तीसगढ़ के प्रलेस- जलेस के साथियों तथा वामपंथी राजनीति दलेां ने लगाातार सलवा जुडूम के मसले पर सरकार का विरोध किया है। डाॅ. विनायक सेन की गिरफ्तारी के बाद उनकी रिहाई के लिए हुए आंदोलन में वे सभी लेखक शामिल रहे। लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में यह प्रमुख मुद्दा था। याद रखना होगा कि अपनी-अपनी तरह से हत्यारी नीतियाँ छत्तसीगढ़ की ही नहीं अन्य भाजपा शासित राज्यों की भी हैं। मध्यप्रदेश में दिनांे छह वर्षों में अल्पसंख्यकों पर सैकड़ों अत्याचार और हत्याएँ हुईं है। प्रलेस के लेखकों ने यहाँ लगातार सरकारी कार्यक्रमों का समय- समय पर विरोध और बहिष्कार किया है। एक सूची प्रकाशित की जानी चाहिए कि मध्यप्रदेश में इन सारे सरकारी कार्यक्रमों में किनकी- किनकी, कहाँ- कहाँ भागीदारी रही। मैं नहीं मानता कि गैर सरकारी प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह में शामिल होने मात्र से लेखकों का हत्यारों के पक्ष में खड़ा होना कहा जाएगा।
साथियों की ओर से उठाया गया अन्य सवाल ‘वसुधा’ के फोर्ड फाउण्डेशन की राशि से कबीर चेतना पुरस्कार लेने का है। मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि संस्था से स्पष्ट जानकारी के बाद, यह पुरस्कार राशि संस्कार की ओर से है फोर्ड फांउण्डेशन की ओर से नहीं- संपादकों ने चुपके-चुपके नहीं एक समारोह में प्राप्त किया है। लोग जानते हैं कि गोविन्द वल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान इलाहाबाद केन्द्रिय विवि का एक प्रभगा है। दलित संस्थान केंद्र उसकी ईकाई है। दलित संस्थान केन्द्र की ओर से विगत कई वर्षांे से दलितों की स्थितियों पर अध्ययन होता रहा है। संस्थान ने दलितों के बारे में दस्तावेजीकरण के अलावा- इलाहाबाद तथा भोपाल जैसे अन्य शहरों में केंद्र की संगोष्ठियाँ हुई हैं। मुझे याद नहीं पड़ता कि हिन्दी का कौन सा महत्वपूर्ण लेखक है जो इन कार्यक्रमों में नहीं गया और मानदेय स्वीकार नहीं किया। जहाँ तक कबीर चेतना पुरस्कार की बात है- पहले हंस और तद्भव ने यह पुरस्कार लिए हैं। इनके संपादक भी संगठनों के हिस्सा हैं। प्रगतिशील ‘वसुधा’ लगातार दलित साहित्य प्रकाशित करती रही है। एक विशेषांक भी प्रकाशित हुआ था, इसलिए निर्णायकों ने इस पत्रिका की पात्रता तय की है। प्रलेस से सीधे जुड़ी होने के कारण प्रगतिशील ‘वसुधा’ का आॅडिटेड आय- व्यय खुले पन्नों में है- कभी भी देखा जा सकता है।
दोनों सवालों का तथ्यात्मक ब्योरा पेश करने के बाद ेरा कहना है कि आज की परिस्थितियों में जिस तरह साम्प्रदायिक शक्तियों का जाल देश में फैल रहा है, समूची मानवीय संस्कृति का बाजरीकरण हो रहा है, मूल्यों को तहस- नहस करने की साजिश है, उस समय अपने- अपने संगठन को अधिक क्रांतिकारी अथवा व्यक्तिगत रूप से स्वंय को अतिशुद्ध सिद्ध करने की कोशिश सांस्कृतिक आंदोलन की एकजुटता को खंडित करेगी। मर्यादाएँ टूटने के बाद आंदोलन छूट जाएगा और लोग व्यक्तिगत हमलों पर उतर आएँगे। माना कि अब लेखकों का संगठन प्रेमचंद कालीन नहीं है, हो भी नहीं सकते। पर आज की स्थितियों में जो संभव है- वह हो रहा है। जरूरत पड़ने पर इनका जुझारू रूप देखा जा सकता है। इनके बिना सामाजिक सांस्कृतिक प्रश्नों पर आवश्यक सामूहिक पहल की कल्पना असंभव होगी। विरोधी शक्तियाँ इन्हें तोड़ना चाहती हैं। कदाचित इनके विघटन की प्रक्रिया शुरू हो गई तो वह दिन खतरनाक होगा।
नवदुनिया, भोपाल में छपी डाॅ. कमलाप्रसाद की प्रतिक्रिया
बुधवार, 23 सितंबर 2009
भित्ती पत्रिका ‘बयान’ पर इस बार दुष्यन्त कुमार की रचना प्रदर्शित की जायेगी
उल्लेखनीय है कि दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में सड़क की ओर लगे 6 फुट चैड़े और 14 फुट ऊँचे होर्डिंग पर कविता का प्रदर्शन नवम्बर 2007 से आरम्भ किया गया है। यहाँ प्रतिमाह कविता बदली जाती है। अब तक हजारों की संख्या में दर्शक इन कविताओं को पढ़ चुके हैं।
सोमवार, 21 सितंबर 2009
ज्ञानरंजन ने प्रलेस से दिया इस्तीफा
दुष्यन्त कुमार पर स्मारक डाक टिकट जारी होगा
रविवार, 20 सितंबर 2009
कुमार सुरेश को पितृ-शोक
रविवार, 13 सितंबर 2009
विट्ठलभाई पटेल अस्वस्थ
‘स्पन्दन’ मृदुला गर्ग को
मंगलवार, 8 सितंबर 2009
निजी तौर पर की मदद
भोपाल। हर चैlखट से तिरस्कार झेल चुके एक विकलांग युवक को पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जनसुनवाई में मदद मिल सकी। विभाग के आयुक्त एवं सुपरिचित कवि-व्यंग्यकार श्री जब्बार ढांकवाला ने अपनी जेब से पांच सौ रुपये की सामग्री खरीद कर विकलांग को दी ताकि वह अपनी टाइसिकल पर शेड लगवा सके। विकलांग युवक निजामुद्दीन नीमच का रहने वाला है। शासन के निर्देश पर प्रति मंगलवार जनसुनवाई होती है, जिसमें विभाग से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जाता है। जब पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जनसुनवाई में निजामुद्दीन पहुंचा और अपनी टाइसिकल पर शेड न होने की बात की। इसके अभाव में उसे धूप और बारिश के कारण परेशानी होती है। सरकारी योजना में इसके लिये कोई प्रावधान न देखते हुए आयुक्त एवं कवि श्री जब्बार ढांकवाला ने अपनी जेब से 500 रुपये निकालकर उस युवक को दिये और अपने वाहनचालक को उसके साथ भेजकर सामान खरीदवाने के लिये कहा। श्री ढांकवाला के इस काम की सभी ने सराहना की, जबकि श्री ढांकवाला कहते हैं कि ये तो सामान्य बात है, क्योंकि इस तरह की मदद तो पहले भी की है और करना चाहिये। ये बात अलग है कि जनसुनवाई की योजना के कारण बात कुछ पत्रकार मित्रों तक पहुंची, इसलिये चर्चा हुई।
शहरयार ने देखा संग्रहालय
शहरयार ने देखा संग्रहालय
भोपाल। देश के सुविख्यात ग़ज़लकार श्री शहरयार भोपाल प्रवास पर आये। उन्होंने दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय का भ्रमण किया और पदाधिकारियों से मुलाकात की। श्री शहरयार ने संग्रहालय की स्थापना पर प्रसन्नता व्यक्त की और अपने समकालीनों के साथ ही अग्रज रचनाकारों का स्मरण किया।
मीडिया प्रबन्धन पर कार्यशाला
भोपाल। दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा मीडिया प्रबन्धन पर तीन दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें शासकीय विभागों और कार्पोरेशन के अधिकारियों के साथ ही महाविद्यालयीन विद्यार्थियों ने भी भाग लिया। कार्यशाला का उद्घाटन सी.वी.रमन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री सन्तोष चैबे, वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपुल्स ग्रुप के कार्यपालक निदेशक श्री महेश श्रीवास्तव तथा इन्दिरा गांधी मानव संग्रहालय के निदेशक श्री विकास भट्ट ने 30 अगस्त को संग्रहालय के सभाकक्ष में किया। समापन समारोह में अतिथि के रूप में विश्वविख्यात सिने गीतकार-संगीतकार श्री रवीन्द्र जैन थे एवं अध्यक्षता पर्यटन विकास निगम के मुख्यमहाप्रबन्धक श्री बालमुकुन्द नामदेव ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में सुविख्यात रंगकर्मी एवं सिने कला निर्देशक श्री जयन्त देशमुख एवं इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय निदेशक श्री के.एस.तिवारी थे।
मंडलोई जी दूरदर्शन में
दिल्ली। प्रसार भारती बोर्ड ने समकालीन कविता के सुविख्यात रचनाकार श्री लीलाधर मंडलोई को एक बार फिर दूरदर्शन का उपमहानिदेशक बनाया है। पिछले कुछ समय से श्री मंडलोई आकाशवाणी के उपमहानिदेशक थे। इस फेरबदल के साथ उनका पता भी बदल गया है। अब उनसे ‘ए-6, हुडको पैलेस, एन्डूज़ गंज, नई दिल्ली-110049’ पर सम्पर्क किया जा सकता है। उनके घर का नया फोन नम्बर 011 26258277 है।
फोटो के साथ प्रेरक कहानी
साइट को तैयार करने का काम चल रहा है। इसके बारे में केंद्र के निदेशक महेश सक्सेना ने बताया कि साइट पर देश के बाल साहित्यकारों के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी। उनके जीवन परिचय को बड़े ही प्रेरक अंदाज में प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने बताया कि बाल साहित्य से संबंधित जानकारी जुटाने के लिए देशभर के बाल साहित्यकारों से संपर्क किया जा रहा है। उनके पास मौजूद संदर्भों को मंगाया जा रहा है। सहारनपुर में रहने वाले बाल साहित्यकार कृष्ण शलभ के पास ऐसे कई बाल साहित्यकारों की कृतियाँ और उनकी तस्वीरों का बहुमूल्य संग्रह है, जो साइट पर देने लायक है। उनसे संपर्क किया गया है। बाल साहित्य से संबंधित बहुमूल्य जानकारी देने वाले सहयोगियों का नाम भी साइट पर दिया जाएगा।
साइट पर बाल रचनाकार के बचपन से जुड़ी कुछ प्रेरक घटनाएँ भी दी जाएगी। फायदा यह होगा कि जो बच्चे इसे देखेंगे, उनके मन में भी बाल साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान देने की चाहत जागेगी।
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
सोमवार, 16 फ़रवरी 2009
सुदीप जी की कविता का अनावरण
भोपाल। अपनी कई भूमिकाओं के जरिये राजधानी से जुड़े रहे संस्कृतिकमीZ स्व. सुदीप बनर्जी सोमवार 16 फरवरी की शाम नये तरीके से शहर से मुखातिब हुये। इस बार दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय ने अपनी भित्ती पत्रिका पर स्व. सुदीप जी की अप्रकाशित कविता लगाई। भित्ती पत्रिका पर सुदीप जी की कविता का अनावरण समकालीन कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर श्री लीलाधर मंडलोई ने किया। श्री मंडलोई ने अनावरण करते हुये कविता की मूल हस्तलिखित प्रति संग्रहालय को भेंट की। संग्रहालय के प्रयासों की सराहना करते हुए उन्होंने इसके निरन्तर बेहतरी की कामना की। उल्लेखनीय है कि श्री मंडलाई संग्रहालय की प्रवर परिषद के वरिष्ठ सदस्य भी है। समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री भगवत रावत ने की एवं विशेष अतिथि के रूप में श्री वीरेन्द्र कुमार बाथम उपस्थित थे। अध्यक्षता कर रहे श्री भगवत रावत ने श्री बनर्जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विभन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने उनकी भाषा वैशिष्ट्य का खास तौर पर उल्लेख किया। इस अवसर पर श्री शैलेन्द्र शैली, श्री मुकेश वर्मा, श्री नवल शुक्ल, श्री बलराम गुमास्ता, श्री राग तेलंग आदि भी सुदीप जी पर अपने विचार रखे। श्री मंडलोई ने अपने वक्तव्य में इस बात का खास तौर पर उल्लेख किया कि श्री बनर्जी भोपाल को अपना सांस्कृतिक घर मानते थे। उन्होंने यह भी बताया कि श्री बनर्जी ने समकालीन भारतीय व्यवस्था में भी प्रशासनिक तौर पर महत्वपूर्ण काम किये। एक वरिष्ठ राजनेता के हवाले से उन्होंने बताया कि श्री बनर्जी ने पंजाब समस्या, एंडरसन की गिरफ्तारी, मलखान सिंह औ फूलनदेवी के आत्मसमर्पण जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मंगलवार, 27 जनवरी 2009
नया उपन्यास ” लावा
कल्पना पब्कलेशन 157 दूसरी मंजिल,चांदपोल बाजार
उदयपुर राजस्थान से प्रकाशित ा लावा, चाणक्य
के सम्पूर्ण जीवन पर आधारित उपन्यास हैा लावा
में आप पाएंगे चाणक्य के सीने में खलबलाता वह
लावा जो नन्द के समुचे वंश को समाप्त करने के
लिए लालायित होता हैा लावा जो प्रतिशोध जगाता
हैा लावा जो चाणक्य को ज्वालामुखी बनाता हैा
लावा जो चाणक्य को महत्वाकांक्षी बनाता हैा
लावा जो चाणक्य को अपने लक्ष्य तक पहुंचाता हैा
लावा जब तक सीने मं नहीं व्यक्ति अपने लक्ष्य
तक नहीं पहुंच सकता ा लावा जो प्रेम का भी
बलिदान देने की शिक्षा देता हैा लावा जो देश प्रेम
के लिए प्रेरित करता हैा यह वह ”लावा” जो हाथ
में उठाते ही पूरा न पढने तक हाथ से नहीं छूटताा
आप अवश्य पढे ा
आपका अपना
कृष्णशंकर सोनाने
नया उपन्यास ” लावा
कल्पना पब्कलेशन 157 दूसरी मंजिल,चांदपोल बाजार
उदयपुर राजस्थान से प्रकाशित ा लावा, चाणक्य
के सम्पूर्ण जीवन पर आधारित उपन्यास हैा लावा
में आप पाएंगे चाणक्य के सीने में खलबलाता वह
लावा जो नन्द के समुचे वंश को समाप्त करने के
लिए लालायित होता हैा लावा जो प्रतिशोध जगाता
हैा लावा जो चाणक्य को ज्वालामुखी बनाता हैा
लावा जो चाणक्य को महत्वाकांक्षी बनाता हैा
लावा जो चाणक्य को अपने लक्ष्य तक पहुंचाता हैा
लावा जब तक सीने मं नहीं व्यक्ति अपने लक्ष्य
तक नहीं पहुंच सकता ा लावा जो प्रेम का भी
बलिदान देने की शिक्षा देता हैा लावा जो देश प्रेम
के लिए प्रेरित करता हैा यह वह ”लावा” जो हाथ
में उठाते ही पूरा न पढने तक हाथ से नहीं छूटताा
आप अवश्य पढे ा
आपका अपना
कृष्णशंकर सोनाने
सोमवार, 12 जनवरी 2009
संग्रहालय का स्थापना दिवस
दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय का छै दिवसीय स्थापना समारोह 30 दिसम्बर 2008 से 4 जनवरी 2009 तक सम्पन्न हुआ। संग्रहालय परिसर में आयोजित इस समारोह में प्रतिदिन विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न हुये। समारोह का आरम्भ 30 दिसम्बर 2008 को वरली शैली की सुविख्यात चित्रकार सुश्री बबीता बी। की चित्र प्रदर्शनी के उद्घाटन से हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार, मध्यप्रदेश के सूचना आयुक्त एवं पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री दिनेश जुगरान थे। अध्यक्षता सुविख्यात आलोचक एवं मध्यप्रदेश कला अकादमी के पूर्व निदेशक प्रो. कमला प्रसाद ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में शिखर सम्मान से विभूषित साहित्यकार एवं मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव डॉ. आनन्द पयासी और मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम के प्रबन्ध निदेशक श्री अश्विनी लोहानी थे। सुश्री बबीता बी. की वरली शैली में चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के पश्चात मुख्य समारोह में संग्रहालय द्वारा घोषित पुरस्कार प्रदान किये गये। धर्मवीर भारती पुरस्कार जयपुर से श्री यशवन्त व्यास द्वारा सम्पादित `अहा ज़िन्दगी´ को प्रदान किया गया। उनकी ओर से यह पुरस्कार दैनिक भास्कर के सम्पादक श्री अभिलाष खाण्डेकर ने प्राप्त किया। `देशान्तर भाषा सेवा पुरस्कार´ से सम्पादक श्री राकेश पाण्डेय को दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका `प्रवासी संसार´ के लिए सम्मानित किया। श्री सन्तोष चौबे द्वारा सम्पादित `इलेक्टॉनिकी आपके लिए´ का `भारतेन्दु पुरस्कार´ श्रीमती वीनिता चौबे ने प्राप्त किया। हैदराबाद से एन.एम.डी.सी. की प्रकाशित पत्रिका `खनिज भारती´ के सम्पादक श्री विजय कुमार को `गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार´ एवं बैंक ऑफ महाराष्ट के सहायक महाप्रबन्धक श्री इन्द्रजीत सिदाना को हिन्दी में उत्कृष्ट कायोZ के लिए `भाषा भारती पुरस्कार´ से सम्मानित किया गया। `कमलेश्वर पुरस्कार´ के लिए दिल्ली के भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित `नया ज्ञानोदय´ को चुना गया। श्री कालिया की ओर से यह पुरस्कार, समारोह के संयोजक डॉ. बाबूराव गुजरे ने स्वीकार किया, जो निकट भविष्य में श्री कालिया को दिल्ली में प्रदान किया जायेगा। 31 दिसम्बर को संग्रहालय परिसर में वरली चित्र कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ, जिसका उद्घाटन पद्मश्री से सम्मानित सुविख्यात छायाचित्रकार श्री वामन ठाकरे ने किया। कार्यशाला के संयोजक श्री महेश सक्सेना ने इस अभिनव प्रयास की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस कार्यशाला में लगभग 160 प्रतिभागी शामिल हैं, जिनमें बच्चों के साथ ही गृहिणियां और कुछ बुजुर्ग भी शामिल हैं। इसके साथ ही बालिका सुधार गृह की 48 छात्राओं को सुधार गृह में ही उपस्थित होकर सुश्री बबीता चित्रकारी सिखायेंगी। सुश्री बबीता ने चार दिनों तक प्रतिदिन दो सौ से अधिक प्रतिभागियों को मनोयोग एवं रोचक ढंग से वरली शैली में चित्र बनाना सिखाया। नववर्ष के आरम्भ में एक जनवरी को समारोह का तीसरा दिन समर्पित था गीतकार स्वर्गीय श्री राजेन्द्र अनुरागी की स्मृति को। 14 फुट उंची और 6 फुट चौड़ी भित्ती पत्रिका `बयान´ पर उनकी कविता का अनावरण उनकी धर्मपत्नी श्रीमती विजया अनुरागी ने किया। उनकी स्मृति को समर्पित कवि गोष्ठी का संचालन सुधा रावत `क्षमा´ ने किया। आरम्भ में श्री अनुरागी के सुपुत्र श्री अमिताभ अनुरागी ने अपने पिता की रचनाओं का पाठ किया। कवि गोष्ठी में नगर के वरिष्ठ और कनिष्ठ पीढ़ी के कवियों ने रचनाओं का पाठ किया। दो जनवरी को दुष्यन्त कुमार पर एकाग्र पुस्तक `एक आवाज़ : सबसे अलग´ का लोकार्पण हुआ। सुविख्यात आलोचक डॉ. धनंजय वर्मा द्वारा दुष्यन्त कुमार पर केिन्द्रत आलेखों का यह संग्रह नरसिंहपुर के प्रस्तुति प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। डॉ. धनंजय वर्मा ने अपनी इस पुस्तक का लोकार्पण अपनी विद्यार्थी श्रीमती ममता त्यागी से करवाया। उल्लेखनीय है कि श्रीमती ममता त्यागी सुविख्यात कथाकार श्री कमलेश्वर की सुपुत्री और दुष्यन्त कुमार की पुत्रवधू हैं। अध्यक्षता श्रीमती राजेश्वरी त्यागी ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री विजय कुमार देव और श्री लक्ष्मीनारायण पयोधि उपस्थित थे। तीन जनवरी को संग्रहालय परिसर में बच्चों की भारी चहल-पहल थी। तीन दिनों से जो विद्यार्थी वरली पेंटिंग का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे, उनके लिए कैनवास के रूप में संग्रहालय की लगभग चालीस फुट लम्बी दीवार उपलब्ध थी। डेढ़ सौ से अधिक बच्चों ने इस दीवार पर चित्रांकन किया। इन बच्चों में बालिका सुधार गृह की पांच बालिकायें भी शामिल थीं। शहर के लिए यह एक अभिनव प्रयोग था। कमलेश्वर की जयन्ती के सन्दर्भ में शाम को सभागार में कमलेश्वर पर केिन्द्रत फिल्म का प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म दिल्ली की साहित्य अकादमी द्वारा सतीश गर्ग के निर्देशन में तैयार की गई है। फिल्म प्रदर्शन के बाद श्री आलोक त्यागी सहित अनेक लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर संग्रहालय निदेशक राजुरकर राज ने घोषणा की कि संग्रहालय शीघ्र ही दुष्यन्त कुमार पर एक वृत्तचित्र तैयार करेगा, जिस पर उपस्थित लोगों ने प्रसन्नता व्यक्त की और सहयोग का आश्वासन दिया। समारोह के अन्तिम दिन चार जनवरी को समारोह के मुख्य अतिथि भोपाल के महापौर श्री सुनील सूद थे। अध्यक्षता श्री राजेन्द्र जोशी ने की। विशेष अतिथि के रूप में वरली चित्र विशेषज्ञ सुश्री बबीता बी. उपस्थित थी। श्री सूद ने कार्यशाला के प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किये। श्री सूद ने संग्रहालय के अभिनव प्रयासों की प्रशंसा की।
प्रस्तुति : संगीता राजुरकर