मंगलवार, 3 नवंबर 2009

नरेन्द्र दीपक को हृदयाघात

भोपाल। दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के प्रमुख पदाधिकारी एवं भारत भवन में वागर्थ के पूर्व निदेशक श्री नरेन्द्र दीपक को 29 अक्टूबर को हृदयाघात हुआ। तत्काल उन्हें एक निजी अस्पताल में भरती करवाया गया, जहाँ गहन चिकित्सा की गई। एन्जीयोग्राफी और एन्जीयोप्लास्टी के बाद उन्हें राहत है। फिलहाल वे अस्पताल में भरती हैं लेकिन एक सप्ताह के भीतर अस्पताल से घर पहुँच जायेंगे। उनका पता ‘3/2, अमलतास, फेज़-2, चूना भट्टी, कोलार रोड, भोपाल-460016’ एवं चलितवार्ता 9425011510 है।

मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद का गठन

भोपाल। करीब दो साल के लम्बे अंतराल से रिक्त संस्कृति परिषद का शासन ने अंततः नए सिरे से गठन कर दिया है। कुल बारह सदस्यों की इस परिषद में साहित्य और कला जगत की हस्तियों के साथ भाजपा संघ से संबद्ध नेता भी शामिल किए गए हैं। राज्यसभा सदस्य अनिल माधव दवे को परिषद में सांसद बतौर शामिल किया गया है। संस्कार भारती से जुड़े ग्वालियर के कामतानाथ वैशम्पायन, नगर निगम इंदौर के सभापति शंकर लालवानी, उस्ताद अलाउद्दीन खां अकादमी से इस्तीफा देने वाले अरुण पलनीटकर तथा भारत भवन न्यास से जुड़े रामेश्वर मिश्र पंकज को परिषद में सदस्य बनाया गया है। कालाकारों में शंकर होम्बल भोपाल, कृष्णकांत चतुर्वेदी जबलपुर, लक्ष्मीनारायण भावसार भोपाल, किरण देशपांडे भोपाल, श्रीराम परिहार खंडवा, इकबाल मजीद भोपाल, कल्पना झोकरकर इंदौर, अर्जुनसिंह धुर्वे मंडला को सदस्य नामंकित किया है।
(दैनिक भास्कर में छपा)

डाॅ. अशोक चक्रधर केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष नियुक्त

दिल्ली। सुविख्यात साहित्यकार एवं हिन्दी सेवी डाॅ. अशोक चक्रधर को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। केन्द्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय यह नियुक्ति तीन वर्षों के लिए की गई है। उल्लेखनीय है कि श्री अशोक चक्रधर दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी के भी उपाध्यक्ष हैं।
श्री चक्रधर से दूरभाष पर सम्पर्क किया, तो उन्होंने कहा कि अब बड़े फलक पर काम करने का अवसर मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि श्री चक्रधर लगभग तीस वर्षों तक हिन्दी अध्यापन करते रहे। उन्होंने हास्य-व्यंग्य को मंच पर अत्यन्त गम्भीरतापूर्वक प्रतिष्ठित करने के साथ ही मंच को एक अलग तरह की गरिमा प्रदान की। हास्य-व्यंग्य की पुस्तकों के साथ ही उनके कुछ गम्भीर पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही आधुनिकतम तकनीक कम्प्यूटर के जरिये भी उन्होंने हिन्दी के लिए अनेक काम किये, जिनमें यूनीकोड को बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए उपलब्ध करवाया है। वे कई साहित्यकारों को लैपटाॅप उपहार में दे चुके हैं। श्री चक्रधर को दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा गत वर्ष दुष्यन्त कुमार अलंकरण से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही उन्हें अनेक सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं।

डाॅ. सूरज पालीवाल का पता बदला

वर्धा। सुविख्यात लेखक डाॅ. सूरज पालीवाल अब वर्धा स्थित महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता नियुक्त किये गये हैं। उनका नया पता ‘अधिष्ठाता, साहित्य विद्यापीठ, महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा- 440 001 है।’

दद्दा की दरी दुष्यन्त के घर, संग्रहालय को मिली दादा माखनलाल चतुर्वेदी की ऐतिहासिक दरी

भोपाल। एक वो दिन था जब दद्दा माखनलाल चतुर्वेदी के सम्मान समारोह के इंतजाम के लिए शायर-कवि दुष्यन्त कुमार खंडवा गए थे। एक शुक्रवार (23 अक्टूबर) की शाम थी जब दद्दा द्वारा इस्तेमाल की गई दरी भोपाल में दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय की निधि बनी।
यह दरी दद्दा के परिजनों ने राष्ट्रीय स्तर पर चले अभियान ‘जाॅय आॅफ गीविंग’ के तहत संग्रहालय को भेंट की। इस आत्मीय आयोजन में दोनों रचनाकारों के व्यक्तित्व के कई जाने-अनजाने पहलू उजागर हुए। इस मौके पर संग्रहालय परिसर में दादा के भतीजे प्रमोद चतुर्वेदी, ‘जाॅय आॅफ गीविंग’ अभियान के तहत यह दरी पाने वाली संस्था स्पंदन के सीमा-प्रकाश तथा इस अभियान के मीडिया पार्टनर ‘नवदुनिया’ के स्थानीय संपादक गिरीश उपाध्याय मौजूद थे। श्री प्रकाश ने बताया कि श्री चतुर्वेदी ने दरी यह कहते हुए प्रदान की थी कि इसका बेहतर इस्तेमाल किया जाए। जब संग्रहालय को इसका पता चला तो उसने इसे अपने यहाँ सुरक्षित रखने का निर्णय किया।
श्री प्रमोद चतुर्वेदी ने दद्दा के साथ बिताए पलों को याद करते हुए कई अनुभव सुनाए। दद्दा उन्हें मुन्ना बाबू कहते थे और हर कार्यक्रम में साथ ले जाते थे। खण्डवा में पोलिटेक्निक के उद्घाटन के समय तो दद्दा के साथ केन्द्रीय मंत्री हुमायूँ कबीर प्रमोदजी को लेने उनके प्राथमिक स्कूल गए थे। दद्दा से मिलने कई क्रांतिकारी और लेखक खंडवा आते थेे। एक दिन राममनोहर लोहिया भी खंडवा पहुंचे और मुलाकात के बाद दद्दा के साथ फोटो खिंचवाने की इच्छा जताई, लेकिन दुर्भाग्य था कि तमाम प्रयासों के बावजूद उस दिन शहर को कोई फोटोग्राफर इस अविस्मरणीय क्षण को कैमरे में कैद करने के लिए उपलब्ध नहीं हो सका।
साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने बताया कि छितगाँव में उनके पैतृक निवास पर ही दद्दा का बचपन गुजरा। श्री जोशी ने वहाँ के घर आँगन में बीती कई घटनाओं को याद किया।
नवदुनिया के स्थानीय सम्पादक श्री गिरिश उपाध्याय ने कहा कि यह देने का नहीं बल्कि छीन लेने का जमाना है। ऐसे में कोई देने की बात करता है तो सुखकर लगता है। ऐसे स्मृति चिन्ह हमें अपने समृद्ध अतीत से जोड़ते हैं। इन्हीं स्मृतियों के सहारे हम भविष्य को सँवार सकते हैं। इसलिए महापुरुषों की स्मृति से जुड़ी जो चीजें सहेजी जा सकती हैं, उन्हें सहेजा जाना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए संग्रहालय के संस्थापक निदेशक राजुरकर राज ने संग्रहालय के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने आग्रह किया कि साहित्यिकपुरखों की धरोहर जहाँ से भी प्राप्त हो, उसे संग्रहालय सहेजने का प्रयत्न करेगा। उन्होंने आव्हान किया कि ऐसी धरोहर संग्रहालय को उपलब्ध करवायें। ऐसा कर हम अपना अतीत सहेज पाएंगे। प्रारम्भ में श्री नरेन्द्र दीपक, श्री शिवकुमार अर्चन और श्री विनोद रायसरा ने अतिथियों का स्वागत किया।
नवदुनिया में ऐसा छपा

जलज को पुत्र शोक

बांदा। सुपरिचित कवि श्री जवाहर लाल जलज के इकलौते पुत्र विवेक कुमार की 31 जुलाई को हत्या कर दी है। बताया गया है कि यह हत्या धन के लालच में की गई है। विज्ञान और विधि स्नातक लगभग 25 वर्षीय विवेक ने हाल ही में विधि व्यवसाय आरम्भ किया था। श्री जलज का पता ‘जलज निकुंज, शंकर नगर, बांदा(उ.प्र.)’ एवं मोबाइल 9415557632 है।

ज्योति व्यास को भ्रातृ-शोक

अमरावती। केसरबाई लाहोटी महा- विद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय (भोपाल) की पदाधिकारी डाॅ. ज्योति व्यास के अग्रज श्री ठाकुरदास उपाध्ये का 13 अक्टूबर को देहावसान हो गया। 56 वर्षीय श्री उपाध्ये मस्तिष्क कैंसर से पीड़ित थे।
उनके परिवार में पत्नी के साथ ही दो बेटे और एक बेटी हैं। डाॅ. ज्योति व्यास का पता ‘मेहेर बाबा काॅलोनी, डेंटल कालेज के सामने, एसआरपीई कैम्प, अमरावती’ है। फोन 0721-2551122 एवं चलितवार्ता 09423123112 है।

जवाहर कर्नावट को मातृ-शोक

भोपाल। सुपरिचित रचनाकार एवं बैंक आॅफ बड़ौदा के वरिष्ठ अधिकारी श्री जवाहर कर्नावट की माताजी श्रीमती कमलादेवी कर्नावट का 16 अक्टूबर को निधन हो गया। वे 81 वर्ष की थीं। वे विगत लगभग 30 वर्षों से नेत्र-ज्योति खो चुकी थीं, बावजूद इसके अन्तिम समय तक सक्रिय रहीं। श्री जवाहर कर्नावट का पता- ‘बी-102, न्यू मीनाल रेसीडेंसी, जे.के.रोड, भोपाल एवं 9424468525 है।

पूजा येरपुड़े को पितृ शोक

भोपाल। ‘अक्षरशिल्पी’ की सहायक सम्पादक एवं चित्रकार श्रीमती पूजा येरपुड़े के पिता डाॅ. रामचंद्र गजापुरे का निधन हो गया। वे 84 वर्ष के थे। डाॅ. गजापुरे सुविख्यात समाजसेवी एवं पेशे से चिकित्सक थे। श्रीमती पूजा येरपुड़े का पता है- ‘25-केसरवानी भवन, फ्लैट नं.- 104, नारायण नगर, भोपाल।’ उनका मोबाइल नम्बर- 9755413769 है।

मुन्नूजी नहीं रहे


भोपाल। दुष्यन्त कुमार के इकलौते अनुज एवं हिन्दी के सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो. प्रेमनारायण त्यागी का 24 अक्टूबर की सुबह देहावसान हो गया। वे लगभग 67 वर्ष के थे। भदभदा विश्रामघाट पर अनेक साहित्यिकारों, बुद्धिजीवियों और राजनीतिज्ञों ने उन्हें अन्तिम विदा दी। दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय ने प्रो. प्रेम त्यागी के निधन को अपनी पारिवारिक क्षति बताया है। उल्लेखनीय है कि दुष्यन्त कुमार ने अपनी सर्वाधिक लोकप्रिय कृति ‘साये में धूप’ अपने प्रिय अनुज ‘मुन्नूजी’ अर्थात प्रेमनारायण त्यागी को समर्पित की थी।