मंगलवार, 29 सितंबर 2009

दुष्यन्त कुमार पर डाक टिकट जारी






मध्यप्रदेश के राज्यपाल महामहिम रामेश्वर ठाकुर ने 27 सितम्बर 2009 को हिन्दी के प्रथम ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार पर स्मारक डाक टिकट का लोकार्पण किया।
इस अवसर पर आयोजित समारोह में बोलते हुए राज्यपाल ने दुष्यन्त कुमार की कविताओं और ग़ज़लों को आम लोगों की अभिव्यक्ति बताते हुए उन्हें एक महान कवि, शायर के रूप में याद किया। ‘दुष्यन्त रचनावली’ के सम्पादक डाॅ. विजय बहादुर सिंह ने 1974-’75 के राजनैतिक घटनाक्रम को याद करते हुए उस दौर में दुष्यन्त के मुखर अन्दाज़ की चर्चा की। राज्यपाल ने स्मारक डाकटिकट जब दुष्यन्त कुमार की पत्नी राजेश्वरी दुष्यन्त कुमार को सौंपा, तब तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूँज उठा। इस विशेष डाक टिकट के मूल प्रस्तावक एवं प्रसिद्ध लेखक स्तम्भकार तथा समीक्षक राजीव श्रीवास्तव ने इस दिशा में किये गये अपने तीन साल के प्रयासों का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह प्रस्ताव सरकार के पास 2006 में भेजा गया था। इसके पूर्व कथाकार कमलेश्वर के सुझाव पर उन्होंने नागार्जुन, धर्मवीर भारती, फणीश्वरनाथ रेणु और मोहन राकेश पर डाक टिकट का प्रस्ताव भेजा था, जो अभी भी विचाराधीन है।
दुष्यन्त कुमार के बेहद करीबी रहे उनके मित्र एवं सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और लेखक डाॅ. धनंजय वर्मा ने अपने सम्बोधन में दुष्यन्त की रचनाओं को साहस और हौसले की अपूर्व मिसाल बताते हुए उन्हें सही अर्थों में आम जनमानस का शायर बताया।
धन्यवाद ज्ञापन देते हुए दुष्यन्त कुमार के पुत्र आलोक त्यागी ने सभी का हृदय से आभार व्यक्त किया। विशेष रूप से उन्होंने राजीव श्रीवास्तव के अथक प्रयासों का ज़िक्र करते हुए उनको परिवार की तरफ से हार्दिक धन्यवाद दिया। साथ ही अपने विशेष उल्लेख में उन्होंने भोपाल में ‘दुष्यन्त कुमार मार्ग’ के मूल प्रस्तावक सोहागपुर के नीलम तिवारी का आभार व्यक्त किया तथा दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के निदेशक राजुरकर राज द्वारा किये जा रहे उल्लेखनीय कार्यों की भी प्रशंसा की। विजयदत्त श्रीधर के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने समारोह में आये सभी लोगों को धन्यवाद दिया।
सोसायटी आॅफ म्यूज़िक, इन्नोवेटिव लिट्रेचर एण्ड इमोशंस (स्माइल), नई दिल्ली तथा सप्रे संग्रहालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस समारोह में डाक विभाग के मध्यप्रदेश डाक परिमण्डल के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल, वरिष्ठ अधिकारीगण सहित शहर के गणमान्य व्यक्तियों तथा नई दिल्ली, मुम्बई एवं दूरदराज से भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। स्मारक डाकटिकट का यह दिन दुष्यन्त कुमार के चाहने वालों को उनके जन्मदिवस के रूप में सदैव याद रहेगा।

प्रस्तुति: संगीता राजुरकर
सहायक निदेशक

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

अलका रिसबुड की पुस्तकें प्रकाशित

भोपाल। सुपरिचित रचनाकार श्रीमती अलका रिसबुड की दो पुस्तकें हाल ही में करवट प्रकाशन ने प्रकाशित की है। वसन्त कानेटकर के मूल मराठी नाटक का हिन्दी अनुवाद ‘सिहर उठी थी मौत यहाँ’ एवं अलका जी का मूल हिन्दी नाटक ‘झंकार‘ करवट प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

मर्यादा टूटी तो बढ़ जाएँगे व्यक्तिगत हमले : कमला प्रसाद

विगत कुछ दिनों से प्रकाशित पत्रिकाओं-समाचार पत्रों के कुछ लेखों तथा हमारे सम्मानित लेखक ज्ञानरंजन की प्रलेस से संबंधित टिप्पणियों ने सांगठनिक स्तर पर कुछ सवाल पैदा किए हैं। प्रगतिशील लेखक संघ का महासिचव होने के नाते मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं उठाए गए सवालों के बारे में वस्तुस्थिति स्पष्ट करूँ। सवाल हैं कि प्रमोद वर्मा संस्थान द्वारा आयोजित ‘प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह’ में प्रलेस की भागीदारी क्यों हुई? प्रगतिशील ‘वसुधा’ ने गोविन्द वल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान से फोर्ड फाउंडेशन की राशि से प्रदत्त कबीर चेतना पुरस्कार चुपके-चुपके क्यों लिया?
पहले प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह के बारे में बात करें। इस आयोजन में प्रलेस- जलेस और जसम के अलावा अन्य महत्वपूर्ण लेखकों को आमंत्रित किया गया था। संस्थान की ओर से भेजे गए पहले निमंत्रण पत्र में वे नाम थे, जिन्हें आमंत्रण भेजा गया था। दूसरे और आखिरी निमंत्रण पत्र में वे नाम थे, जिन्होंने आने की स्वीकृति दी थी। पूछने पर ज्ञात हुआ कि जिनकी स्वीकृति नहीं मिली,उन्हें छोड़ दिया गया। जहाँ तक प्रमोद वर्मा का सावल है- वे माक्र्सवादी और मुक्तिबोध तथा परसाई के साथी थे। वे प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष मंडल में रहे हैं। छत्तीसगढ़ उनकी कर्मभूमि रही है। इसीलिए बहुत से लेखकों से उनके वैचारिक और पारिवारिक रिश्ते थे। विश्वरंजन तब उसी क्षेत्र में पदस्थ होने के कारण प्रमोद जी की मित्र मंडली में थे। प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान बना तो- उसमें रूचि से वे सहयोगी बने। छत्तीसगढ़ के अनेक लेखकों के साथ आजकल वे इसके अयक्ष हैं। निर्णय का अधिकार अकेले उन्हें ही नहीं है। पृष्ठभूमि के रूप में इसे जानना जरूरी है। इस कार्यक्रम की घोषणा हुई- तो मैंन छत्तीसगढ़ प्रलेस के साथियों से पूछा कि क्या स्थिति है। छत्तीसगढ़ के साथियों ने सलाह दी कि प्रमोद वर्मा पर कार्यक्रम प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की ओर से हैं। सरकारी अनुदान नहीं है, इसीलिए आना चाहिए। मैंनें स्वीकृति देने वाले लेखकों में अनेक वैचारिक साथियों और संगठनों में शामिल लेखकों के नाम देखे तो जाना तय किया। समारोह में आने वालों में छत्तीसगढ़ के महतवपूर्ण लेखकों के अलावा खगेन्द्र ठाकुर, अशोक वाजपेयी, चन्द्रकांत देवताले, शिवकुमार मिश्र, कृष्ण मोहन, प्रभाकर श्रोत्रिय जैसे प्रमुख थे। कृष्ण मोहन और भगवान सिंह को आलोचना पुरस्कार भी दिया गया था। अच्छी बात यह हुई कि प्रमोद वर्मा समग्र का प्रकाशन हुआ।
कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री और कुछ नेताओं के आने तथा विवादास्पद वक्तव्य देने पर लेखकों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई- जिसका आक्रामक उत्तर लोगों ने अपने- अपने वक्तव्य में दिया। पूरे आयोजन में प्रमोद वर्मा की विचारधारा- ‘माक्र्सवाद’ बहस का आधार बनी रही। इसी दौरान कहीं से आपसी चर्चा में सुनाई पड़ा कि एक मित्र लेखक ने ‘पब्लिक एजेण्डा’ में विश्वरंजन अर्थात डीजीपी छत्तीसगढ़ के सलवा जुडूम के समर्थन और नक्सलपंथियों के विरोध में छपे इंटरव्यू को मुद्दा बनाकर कार्यक्रम में शामिल होना स्थगित किया है। उस समय तक लोगों ने ‘पब्लिक एजेण्डा’ का इंटरव्यू नहीं देखा था। इसके अलावा सीधे भाजपा शासित सरकारी कार्यक्रम न होने के कारण लोगो आए थे। उन्हें पहले से पता था कि सलवा जुडूम भाजपा सरकार के एजेण्डे में है। आमंत्रित लेखकों ने प्रमोद वर्मा स्मृति के पूरे अयोजन को लेकर कुछ आपत्तियाँ दर्ज कराईं। संस्थान के साथियों को परामर्श दिया गया कि इसे हमेशा सत्ता के प्रमाण से अलग रखा जाए।
छत्तीसगढ़ के प्रलेस- जलेस के साथियों तथा वामपंथी राजनीति दलेां ने लगाातार सलवा जुडूम के मसले पर सरकार का विरोध किया है। डाॅ. विनायक सेन की गिरफ्तारी के बाद उनकी रिहाई के लिए हुए आंदोलन में वे सभी लेखक शामिल रहे। लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में यह प्रमुख मुद्दा था। याद रखना होगा कि अपनी-अपनी तरह से हत्यारी नीतियाँ छत्तसीगढ़ की ही नहीं अन्य भाजपा शासित राज्यों की भी हैं। मध्यप्रदेश में दिनांे छह वर्षों में अल्पसंख्यकों पर सैकड़ों अत्याचार और हत्याएँ हुईं है। प्रलेस के लेखकों ने यहाँ लगातार सरकारी कार्यक्रमों का समय- समय पर विरोध और बहिष्कार किया है। एक सूची प्रकाशित की जानी चाहिए कि मध्यप्रदेश में इन सारे सरकारी कार्यक्रमों में किनकी- किनकी, कहाँ- कहाँ भागीदारी रही। मैं नहीं मानता कि गैर सरकारी प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह में शामिल होने मात्र से लेखकों का हत्यारों के पक्ष में खड़ा होना कहा जाएगा।
साथियों की ओर से उठाया गया अन्य सवाल ‘वसुधा’ के फोर्ड फाउण्डेशन की राशि से कबीर चेतना पुरस्कार लेने का है। मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि संस्था से स्पष्ट जानकारी के बाद, यह पुरस्कार राशि संस्कार की ओर से है फोर्ड फांउण्डेशन की ओर से नहीं- संपादकों ने चुपके-चुपके नहीं एक समारोह में प्राप्त किया है। लोग जानते हैं कि गोविन्द वल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान इलाहाबाद केन्द्रिय विवि का एक प्रभगा है। दलित संस्थान केंद्र उसकी ईकाई है। दलित संस्थान केन्द्र की ओर से विगत कई वर्षांे से दलितों की स्थितियों पर अध्ययन होता रहा है। संस्थान ने दलितों के बारे में दस्तावेजीकरण के अलावा- इलाहाबाद तथा भोपाल जैसे अन्य शहरों में केंद्र की संगोष्ठियाँ हुई हैं। मुझे याद नहीं पड़ता कि हिन्दी का कौन सा महत्वपूर्ण लेखक है जो इन कार्यक्रमों में नहीं गया और मानदेय स्वीकार नहीं किया। जहाँ तक कबीर चेतना पुरस्कार की बात है- पहले हंस और तद्भव ने यह पुरस्कार लिए हैं। इनके संपादक भी संगठनों के हिस्सा हैं। प्रगतिशील ‘वसुधा’ लगातार दलित साहित्य प्रकाशित करती रही है। एक विशेषांक भी प्रकाशित हुआ था, इसलिए निर्णायकों ने इस पत्रिका की पात्रता तय की है। प्रलेस से सीधे जुड़ी होने के कारण प्रगतिशील ‘वसुधा’ का आॅडिटेड आय- व्यय खुले पन्नों में है- कभी भी देखा जा सकता है।
दोनों सवालों का तथ्यात्मक ब्योरा पेश करने के बाद ेरा कहना है कि आज की परिस्थितियों में जिस तरह साम्प्रदायिक शक्तियों का जाल देश में फैल रहा है, समूची मानवीय संस्कृति का बाजरीकरण हो रहा है, मूल्यों को तहस- नहस करने की साजिश है, उस समय अपने- अपने संगठन को अधिक क्रांतिकारी अथवा व्यक्तिगत रूप से स्वंय को अतिशुद्ध सिद्ध करने की कोशिश सांस्कृतिक आंदोलन की एकजुटता को खंडित करेगी। मर्यादाएँ टूटने के बाद आंदोलन छूट जाएगा और लोग व्यक्तिगत हमलों पर उतर आएँगे। माना कि अब लेखकों का संगठन प्रेमचंद कालीन नहीं है, हो भी नहीं सकते। पर आज की स्थितियों में जो संभव है- वह हो रहा है। जरूरत पड़ने पर इनका जुझारू रूप देखा जा सकता है। इनके बिना सामाजिक सांस्कृतिक प्रश्नों पर आवश्यक सामूहिक पहल की कल्पना असंभव होगी। विरोधी शक्तियाँ इन्हें तोड़ना चाहती हैं। कदाचित इनके विघटन की प्रक्रिया शुरू हो गई तो वह दिन खतरनाक होगा।
नवदुनिया, भोपाल में छपी डाॅ. कमलाप्रसाद की प्रतिक्रिया

बुधवार, 23 सितंबर 2009

भित्ती पत्रिका ‘बयान’ पर इस बार दुष्यन्त कुमार की रचना प्रदर्शित की जायेगी

भोपाल। दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय की भित्ती पत्रिका ‘बयान’ पर इस बार दुष्यन्त कुमार की रचना प्रदर्शित की जायेगी। इसका अनावरण दुष्यन्त कुमार की जयन्ती (जन्मपत्रिका के अनुसार) 27 सितम्बर की पूर्व सन्ध्या पर 26 सितम्बर को देश के विख्यात व्यंग्यकवि श्री अशोक चक्रधर एवं विख्यात शायर श्री मुनव्वर राना करेंगे।
उल्लेखनीय है कि दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में सड़क की ओर लगे 6 फुट चैड़े और 14 फुट ऊँचे होर्डिंग पर कविता का प्रदर्शन नवम्बर 2007 से आरम्भ किया गया है। यहाँ प्रतिमाह कविता बदली जाती है। अब तक हजारों की संख्या में दर्शक इन कविताओं को पढ़ चुके हैं।

सोमवार, 21 सितंबर 2009

ज्ञानरंजन ने प्रलेस से दिया इस्तीफा

भोपाल। हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार एवं ‘पहल’ के सम्पादक श्री ज्ञानरंजन ने राजनीतिक मतभेदों के कारण अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। श्री ज्ञानरंजन के अनुसार उन्होंने यह कदम प्रलेस के राजनीतिक पतन के विरोध में दिया है। उल्लेखनीय है कि श्री ज्ञानरंजन ने बरसों से लोकप्रिय पत्रिका ‘पहल’ का प्रकाशन बन्द करके साहित्य जगत में नई हलचल पैदा कर दी थी।

दुष्यन्त कुमार पर स्मारक डाक टिकट जारी होगा



भोपाल। भारतीय डाक विभाग द्वारा कालजयी ग़ज़लकार स्व. दुष्यन्त कुमार पर स्मारक डाक टिकट जारी किया जायेगा। यह डाक टिकट दुष्यन्त कुमार जयन्ती (जन्मपत्रिका के अनुसार) 27 सितम्बर को भोपाल में मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री रामेश्वर ठाकुर जारी करेंगे।

रविवार, 20 सितंबर 2009

कुमार सुरेश को पितृ-शोक

भोपाल। सुपरिचित कवि श्री कुमार सुरेश के पिताश्री श्रली रामकृष्ण शर्मा का अल्प बीमारी के बाद विगत 15 सितम्बर को देहावसान हो गया। वे 73 वर्ष के थे।

रविवार, 13 सितंबर 2009

विट्ठलभाई पटेल अस्वस्थ

सागर। सुविख्यात गीतकार, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय की प्रवर परिषद के सदस्य एवं मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री श्री विट्ठलभाई पटेल अचानक अस्वस्थ हो गये। उन्हें सागर के तिली अस्पताल में भरती किया गया है।

‘स्पन्दन’ मृदुला गर्ग को

भोपाल। साहित्य, संस्कृति तथा कलाओं के प्रोत्साहन के लिए समर्पित ‘स्पन्दन संस्था भोपाल’ द्वारा ‘स्पंदन कथा शिखर सम्मान वर्ष 2009’ के लिये हिन्दी की प्रतिष्ठित कथा लेखिका मृदुला गर्ग को चुना गया है। यह चयन सर्वसम्मति से वरिष्ठ निर्णायक मण्डल द्वारा किया गया है। निर्णायक मंडल के सदस्य थे- प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी (समन्वयक) श्री गोविन्द मिश्र, डाॅ. प्रभाकर श्रोत्रिय, श्रीमती चित्रा मुद्गल तथा प्रो. कमला प्रसाद। पुरस्कार के अन्तर्गत इकतीस हजार रूपये की राशि, शाॅल, श्रीफल तथा स्मृति चिन्ह दिया। पुरस्कार भोपाल में एक भव्य समारोह में दिया जायेगा।

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

निजी तौर पर की मदद

भोपाल। हर चैlखट से तिरस्कार झेल चुके एक विकलांग युवक को पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जनसुनवाई में मदद मिल सकी। विभाग के आयुक्त एवं सुपरिचित कवि-व्यंग्यकार श्री जब्बार ढांकवाला ने अपनी जेब से पांच सौ रुपये की सामग्री खरीद कर विकलांग को दी ताकि वह अपनी टाइसिकल पर शेड लगवा सके। विकलांग युवक निजामुद्दीन नीमच का रहने वाला है। शासन के निर्देश पर प्रति मंगलवार जनसुनवाई होती है, जिसमें विभाग से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जाता है। जब पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जनसुनवाई में निजामुद्दीन पहुंचा और अपनी टाइसिकल पर शेड न होने की बात की। इसके अभाव में उसे धूप और बारिश के कारण परेशानी होती है। सरकारी योजना में इसके लिये कोई प्रावधान न देखते हुए आयुक्त एवं कवि श्री जब्बार ढांकवाला ने अपनी जेब से 500 रुपये निकालकर उस युवक को दिये और अपने वाहनचालक को उसके साथ भेजकर सामान खरीदवाने के लिये कहा। श्री ढांकवाला के इस काम की सभी ने सराहना की, जबकि श्री ढांकवाला कहते हैं कि ये तो सामान्य बात है, क्योंकि इस तरह की मदद तो पहले भी की है और करना चाहिये। ये बात अलग है कि जनसुनवाई की योजना के कारण बात कुछ पत्रकार मित्रों तक पहुंची, इसलिये चर्चा हुई।

शहरयार ने देखा संग्रहालय










शहरयार ने देखा संग्रहालय




भोपाल। देश के सुविख्यात ग़ज़लकार श्री शहरयार भोपाल प्रवास पर आये। उन्होंने दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय का भ्रमण किया और पदाधिकारियों से मुलाकात की। श्री शहरयार ने संग्रहालय की स्थापना पर प्रसन्नता व्यक्त की और अपने समकालीनों के साथ ही अग्रज रचनाकारों का स्मरण किया।

मीडिया प्रबन्धन पर कार्यशाला




भोपाल। दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा मीडिया प्रबन्धन पर तीन दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें शासकीय विभागों और कार्पोरेशन के अधिकारियों के साथ ही महाविद्यालयीन विद्यार्थियों ने भी भाग लिया। कार्यशाला का उद्घाटन सी.वी.रमन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री सन्तोष चैबे, वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपुल्स ग्रुप के कार्यपालक निदेशक श्री महेश श्रीवास्तव तथा इन्दिरा गांधी मानव संग्रहालय के निदेशक श्री विकास भट्ट ने 30 अगस्त को संग्रहालय के सभाकक्ष में किया। समापन समारोह में अतिथि के रूप में विश्वविख्यात सिने गीतकार-संगीतकार श्री रवीन्द्र जैन थे एवं अध्यक्षता पर्यटन विकास निगम के मुख्यमहाप्रबन्धक श्री बालमुकुन्द नामदेव ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में सुविख्यात रंगकर्मी एवं सिने कला निर्देशक श्री जयन्त देशमुख एवं इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय निदेशक श्री के.एस.तिवारी थे।

मंडलोई जी दूरदर्शन में

दिल्ली। प्रसार भारती बोर्ड ने समकालीन कविता के सुविख्यात रचनाकार श्री लीलाधर मंडलोई को एक बार फिर दूरदर्शन का उपमहानिदेशक बनाया है। पिछले कुछ समय से श्री मंडलोई आकाशवाणी के उपमहानिदेशक थे। इस फेरबदल के साथ उनका पता भी बदल गया है। अब उनसे ‘ए-6, हुडको पैलेस, एन्डूज़ गंज, नई दिल्ली-110049’ पर सम्पर्क किया जा सकता है। उनके घर का नया फोन नम्बर 011 26258277 है।

भोपाल। बाल कल्याण एंव बाल साहित्य शोध केंद्र ूूूण्इंसांसलंदण्बवउ वेबसाइट तैयार कर रहा है। इस साइट की सबसे खास बात यह होगी कि इसमें बाल साहित्य से जुड़े विस्तृत रचना संसार का आनन्द लिया जा सकेगा। देश भर के बाल साहित्यकारों के बारे में भी बताया जाएगा। वेबसाइट का मुख्य उद्देश्य आज के बदलते परिवेश में लोगों को देश के बाल साहित्य से रूबरू कराना है।
फोटो के साथ प्रेरक कहानी
साइट को तैयार करने का काम चल रहा है। इसके बारे में केंद्र के निदेशक महेश सक्सेना ने बताया कि साइट पर देश के बाल साहित्यकारों के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी। उनके जीवन परिचय को बड़े ही प्रेरक अंदाज में प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने बताया कि बाल साहित्य से संबंधित जानकारी जुटाने के लिए देशभर के बाल साहित्यकारों से संपर्क किया जा रहा है। उनके पास मौजूद संदर्भों को मंगाया जा रहा है। सहारनपुर में रहने वाले बाल साहित्यकार कृष्ण शलभ के पास ऐसे कई बाल साहित्यकारों की कृतियाँ और उनकी तस्वीरों का बहुमूल्य संग्रह है, जो साइट पर देने लायक है। उनसे संपर्क किया गया है। बाल साहित्य से संबंधित बहुमूल्य जानकारी देने वाले सहयोगियों का नाम भी साइट पर दिया जाएगा।
साइट पर बाल रचनाकार के बचपन से जुड़ी कुछ प्रेरक घटनाएँ भी दी जाएगी। फायदा यह होगा कि जो बच्चे इसे देखेंगे, उनके मन में भी बाल साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान देने की चाहत जागेगी।