गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में शरद जोशी की ‘राग भोपाली’ लोकार्पित

साहित्यिक तीर्थ पर गूँजा ‘गरज के मारो का तीर्थ’

भोपाल। 20 मार्च की शाम दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के लिये इसी मायने में अविस्मरणीय रही कि मंचीय कवि सम्मेलनों में कविता के बीच गद्य (व्यंग्य विधा) से बरसांे तक श्रोताओं के दिलों पर राज करने वाले स्व. शरद जोशी की बेटी नेहा शरद संग्रहालय पधारी थीं। भोपाल पर केन्द्रित स्व. शरद जोशी द्वारा लेखों को पुस्तक रूप में लेकर यह शाम इस मायने में और भी महत्वपूर्ण रही कि स्व. शरद जोशी बरसों तक माता मन्दिर के पास स्थित सरकारी मकान (जो अब प्लेटिनम प्लाजा का एक हिस्सा बन चुका है) में रहे और नेहा शरद का बचपन इसके आसपास रह रहे तमाम रचनाकारों, पत्रकारों दुष्यन्त कुमार, स्व. राजेन्द्र अनुरागी स्व. शेरी भोपाली, स्व. अम्बाप्रसाद श्रीवास्तव, डाॅ. शंभुदयाल गुरू, स्व. श्री रामचरण दुबोलिया, डाॅ. प्रभाकर श्रोत्रिय, श्री राजेन्द्र जोशी, श्री रामप्रकाश त्रिपाठी के बीच बीता और नेहा अपने बचपन को तलाशती भोपालवासियों से रूबरू हुईं। इसी के आसपास अब दुष्यन्त कुमार की स्मृति में पाण्डुलिपि संग्रहालय स्थापित है , जो साहित्यिक तीर्थ बन चुका है।
यूँ तो नेहा शरद टीवी कलाकार और सिने-अभिनेत्री है, परन्तु वर्तमान में उनकी लोकप्रियता स्व. शरद जोशी की व्यंग्य रचनाओं पर आधारित सब टीवी से प्रसारित होने वाले धारावाहिक ‘लापतागंज’ के कारण बढ़ी है और इस धारावाहिक में उनकी भूमिका क्रिएटिव डायरेक्टर की है। निश्चित ही स्व. शरद जोशी और स्व. इरफ़ाना शरद (रंगमंच कलाकार) की बेटी होने के कारण नेहा को विरासत में जो दृष्टि मिली है, उसने लापतागंज को सही मुकाम तक पहुँचाने की कोशिश की है।
20 मार्च को स्व. शरद जोशी की कृति ‘राग भोपाली’ को लोकार्पित करने के लिए हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक डाॅ. प्रभाकर श्रोत्रिय (नई दिल्ली), जनसम्पर्क आयुक्त श्री मनोज श्रीवास्तव, सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री श्रीकांत आप्टे, सुश्री नेहा शरद और श्री केशव राय (मुम्बई) के साथ बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
राग भोपाली के इस लोकार्पण समारोह के अवसर पर कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि डाॅ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने स्व. शरद जोशी के साथ बिताये समय को याद करते हुए कहा कि अपने आसपास घटित हो रही घटनाओं को पैनी दृष्टि से पकड़कर व्यंग्य के माध्यम से श्रोताओं तक पहुँचाते थे। वह शरद जोशी जैसे असाधारण व्यक्ति के ही बस की बात थी और उनके हर व्यंग्य में शासन-प्रशासन में बैठे स्वार्थी तत्वों द्वारा भोले-भाले साधारण नागरिकों के प्रति होने वाले व्यवहार की पीड़ा झलकती थी। उन्होंने इस आयोजन में अपनी उपस्थिति को सौभाग्य मानते हुए कहा कि श्री राजुरकर राज और उनके सहयोगियों के प्रयासों से निश्चित ही साहित्य के क्षेत्र में बड़ा काम हो रहा है और इस काम को आगे बढ़ाने के लिए यथासंभव सभी का सहयोग मिलना चाहिये।
जनसम्पर्क आयुक्त श्री मनोज श्रीवास्तव ने इस आयोजन की अध्यक्षता करते हुए कहा कि वर्तमान समय में टी.वी. चैनल्स पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों के बीच ‘लापतागंज’ मरुद्यान की तरह लगता है। आज जबकि रबर की तरह खिंचते चले जा रहे टीवी सीरियल माहौल में विकृति पैदा कर रहे है, वहीं लापतागंज के पात्र बड़ी सहजता के साथ उन विसंगतियों को उजागर कर रहे हैं जिनके कारण लोग परेशान थे, हैं, और हो रहे हैं। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि स्व. जोशी के व्यंग्य में हमेशा ही ‘नैतिकता-बोध’ सशक्त ढंग से उभरकर आया है।
इस अवसर पर कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सुश्री नेहा शरद ने अपने ‘पप्पा’ यानि स्व. शरद जोशी को बड़ी शिद्दत से याद करते हुए उनके दो लेख ‘गरज के मारो का तीर्थ नगर भोपाल, और ‘अपनी-अपनी मछली’ का वाचन कर जहाँ श्रोताओं को गुदगुदाया, वहीं इन दो रचनाओं में निहितार्थ ने लोगों को शरद जोशी की व्यंग्य की पैनी धार और उसकी ताकत से परिचित करवाया। सुश्री नेहा शरद ने ’लापतागंज’ के बारे में अपनी बात रखते हुए कहा कि कई लोग पूछते हैं कि ‘लापतागंज’ में शरद जोशी कहाँ है? तो मैं मानती हूँ कि पप्पा ने जिस भावना और सोच के साथ व्यंग्य लिखे हैं वह ‘तेज’ ‘लापतागंज’ में मैं नहीं ला पाई हूँ, पर मैं अपने पापा जैसा व्यक्ति कहाँ से लाऊँ जो उनकी रचनाओं को संवाद के रूप में हूबहू प्रस्तुत कर सके। फिर भी मुझे लगता है कि शरद जोशी के बहाने यह जो काम शुरू हुआ है उसका सिलसिला आगे बढ़ेगा और अच्छे साहित्यकारों की कृति समाज के सामने आ पायेगी।
निश्चित ही नेहा जी का बचपन दक्षिण तात्या टोपे नगर के जिस मकान और गलियों में बीता है वहाँ से उस धरोहर गायब हो जाने से वे भावनात्मक रूप से आहत हुई और उन्होंने कहा कि शरद जोशी जिस मकान में रहते थे, वह अरबों का था, लेकिन अब वह केवल करोड़ों का रह गया। उनकी स्मृति को बचाकर रखा जाना चाहिये था, पर सरकार ने ऐसा नहीं किया, यह मेरी समझ से परे है। उस मकान के टूटने पर भोपाल के साहित्यकारों के मौन पर भी उन्होंने अफसोस जताया।
सुश्री नेहा ने शरद जोशी के व्यक्तित्व कृतित्व को याद करते हुए कहा कि ‘राग भोपाली’ में पापा के वो लेख संकलित हैं जो भोपाल पर केन्द्रित हैं। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि इस वर्ष राजकमल प्रकाशन से ‘राग भोपाली’ के बाद शरद जोशी की पाँच और पुस्तकें ‘घाव करे गंभीर’, ‘वोट ले दरिया में डाल’, ‘रहा किनारे बैठ’ और ‘परिक्रमा’ छपकर आ रही हैं, तथा टीवी वाले उनकी कृतियों पर काफी काम करना चाहते हैं।
इस आयोजन में आधार वक्तव्य श्री श्रीकांत आप्टे ने दिया वही श्री नरेन्द्र दीपक ने सभी का स्वागत किया। आभार श्री राजेन्द्र जोशी ने व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन संग्रहालय के निदेशक श्री राजुरकर राज ने किया। इस आयोजन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि साहित्यकारों के अलावा वे लोग जिन्होंने नेहा शरद का बचपन देखा था या उन्हें पढ़ाया था और जो उनके साथ पढ़े थे ऐसे लोग उनसे मिलने आये और नेहा जी ने अपना एक दिन सिर्फ ऐसे ही लोगों के साथ बिताया।

करुणा राजुरकर

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