रविवार, 10 जनवरी 2010



गरिमापूर्वक मनाया संग्रहालय का स्थापना पर्व
भोपाल। हिन्दी ग़ज़ल के प्रणेता दुष्यन्त कुमार की यादों को प्रण-प्राण से सहेजने वाले दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय ने इस दफे अपना स्थापना उत्सव कुछ लीक से हटकर मनाया। विचारों के बोझिल-वितर्क से परे, सांस्कृतिक सरोकारों की इस समावेशी को आत्मीय प्रतिसाद मिला। भारत भवन में 29 एवं 30 दिसम्बर को मने जलसे की पहली शाम शास्त्रीय नृत्य कथक की भाव प्रवण भंगिमाओं से दमकी। तो दूसरी शाम हरदिल अजीज ग़ज़ल गायक चन्दन दास के सुरीले कण्ठ से हुई रस वर्षा में मानों दुष्यन्त कुमार अपने ग़ज़ल संसार में प्रत्यक्ष हो उठे। सामाजिक सरोकारों के प्रति सच्चा उत्तरदायित्व निभाने वाली पत्रिकाओं को पुरस्कृत किया गया।
राजीव श्रीवास्तव वीज़नल पैनोरमा, संस्कृति एवं जनसम्पर्क विभागों की साझेदारी में दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा आयोजित समारोह की पहली शाम कथक के सुनामधन्य साधक स्व. मधुकर आनन्द की स्मृतियों को समर्पित रही। भाव और श्रृंगार की सम्मोहकारी छवियों से दमकी इस शाम को स्व. आनन्द के मित्र और प्रख्यात कथक नृत्य शिल्पी राजेन्द्र गंगानी ने लीलाधर भगवान कृष्ण के सहज आचरणों को उकेरते हुए गरिमामय बनाया तो दिल्ली कथक केन्द्र की निदेशक डाॅ. चेतना ज्योतिषी ब्यौहार ने भगवान शिव के रूपों का मोहक वर्णन प्रस्तुत किया। स्व. आनन्द के नर्तक पुत्र आर्यव आनन्द की उत्साहकारी कथक बानगियों में उनके पिता की अनुवांशिकता के स्पष्ट प्रमाण मिले। इस शाम को सुप्रतिष्ठित भजन गायक पं. सुरेश दुबे के कण्ठ ने अध्यात्मिक यात्रा भी कराई। पं. विवेक देशमुख, उस्ताद इरशाद अहमद वारसी, पं. पुष्कर देशमुख, सौरभ आनन्द, जाॅर्ज फ्रांसिस और ओमप्रकाश साहू की संगत ने भी खूब प्रभाव पैदा किया। इस सभा का संचालन संजय श्रीवास्तव ने किया।

पुरुषार्थ सराहनीय
समारोह के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव ने सम्बोधन के दौरान संग्रहालय के निदेशक राजुरकर राज की भूरि- भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ‘ऐसे समय में जब सगे रिश्ते हमारे बीच से छिटकते जा रहे हैं, वहीं दुष्यन्त कुमार और पूर्वज साहित्यकारों को लेकर राजुरकर राज की चिंताओं ने दुष्यन्त कुमार को समाज में बनाए रखने का अनुकरणीय कार्य किया है। उनका पुरुषार्थ सचमुच सराहना के योग्य है।’ अध्यक्षता पटना के पं. बलराम लाल ने की। स्वागत उद्बोधन वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने दिया।
पुरस्कार समारोह
संग्रहालय की ओर से पुरस्कार समारोह का आयोजन भी किया गया। इस मर्तबा भोपाल के एनएचडीसी लिमिटेड को हिन्दी में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने के लिए ‘भाषा भारती पुरस्कार’ से नवाज़ा गया। कार्पोरेशन की ओर से पुरस्कार मानव संसाधन विभाग के मुख्य श्री ए.के. कपूर और वरिष्ठ प्रबन्धक श्री अखिलेश जैन ने ग्रहण किया। कमलेश्वर पुरस्कार मासिक पत्रिका ‘नवनीत’ की ओर से श्री श्याम वोरा ने ग्रहण किया। बैंक आॅफ बड़ौदा की गृह पत्रिका ‘अक्षय्यम’ मुम्बई को दिया गया भारतेन्दु पुरस्कार मुम्बई मुख्यालय से आये महाप्रबन्धक श्री नन्दन श्रीवास्तव, भोपाल के अंचल प्रमुख श्री कैलाश शंकर एवं मुख्य प्रबन्धक डाॅ. जवाहर कर्नावट ने प्राप्त किया। भोपाल से प्रकाशित ‘प्रेरणा’ तथा ‘शिवम’ पत्रिका को क्रमशः माखनलाल चतुर्वेदी और विद्यानिवास मिश्र पुरस्कारों से नवाजा गया, जिसे पत्रिका सम्पादक श्री अरुण तिवारी व श्री विनोद तिवारी ने प्राप्त किया। जबकि शिमला से छपने वाली ‘सेतु’ का प्रभाष जोशी पुरस्कार दिल्ली से आये लेखक डाॅ. लालित्य ‘ललित’ ने प्राप्त किया। इस अवसर पर ‘प्रेरणा’ के नए अंक का लोकार्पण वरिष्ठ कवि राजेश जोशी द्वारा गया। प्रशस्ति वाचन राजेन्द्र जोशी ने किया।
इस अवसर पर संग्रहालय द्वारा पिछले दिनों युवा सृजनात्मकता को प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रीय हिमाक्षरा साहित्य परिषद के सहयोग से आयोजित गज़ल लेखन स्पर्धा के पुरस्कारों का वितरण भी किया गया। इसके संयोजक श्री इसरार कुरैशी ‘गुणेश थे’। पहला पुरस्कार दिल्ली के जतिन्दर परवाज़, दूसरा दमोह के ताबीश नैय्यर तथा जबलपुर की अमिता श्रीवास्तव ‘तमन्ना’ को तीसरे स्थान के लिए पुरस्कृत किया गया। साथ ही हरदा के श्री मंसूर अली मंसूर को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। शेष प्रतिभागियों और विजेताओं को प्रमाण पत्र डाक द्वारा भेजे जायेंगे।
इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद श्री कैलाश जोशी ने संग्रहालय के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने आज के दौर में बढ़ती व्यावसायिक प्रवृत्ति पर गहरी चिन्ता व्यक्त की और संग्रहालय के दस्तावेज़ीकरण के काम को अनुकरणीय माना। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित भारतीय स्टेट बैंक भोपाल वृत्त के मुख्य महाप्रबंधक श्री एम.भगवन्त राव ने अपने उद्बोधन में संग्रहालय के विविध प्रयत्नों को रेखांकित करते हुए समाज के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। विशिष्ट अतिथि बतौर स्व. दुष्यन्त कुमार की जीवन संगिनी श्रीमती राजेश्वरी दुष्यन्त कुमार भी उपस्थित थीं।
‘चन्दन’ की छुअन से महकी दुष्यन्त की ग़ज़लें
आम आदमी की संवेदनाओं को हिमालयी गरिमा देने वाले प्रख्यात गज़ल शिल्पी दुष्यन्त कुमार के नाम रही समारोह की आखिरी शाम में ग़ज़ल गायकी की यादगार महफ़िल सजी, जिसे सँवारने खासतौर पर हरदिल अज़ीज़ गायक चन्दन दास मुम्बई से तशरीफ लाए थे। इसके साथ ही राजधानी के प्रतिभाशाली व जाने-माने ग़ज़ल गायक गणेश दत्त जोशी, उनकी सुपुत्री कोंपल दत्त और डाॅ. टी.एन. दुबे ने भी सुरीली आस्था का परचम फहराया। इस सुरभीनी सभा को, दुष्यन्त के पोशीदा पहलुओं का जिक्र करते हुए यशस्वी कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने आत्मीय उद्घोषणा से बांधे रखा। स्वागत उद्बोधन नेरन्द्र दीपक ने दिया।
राजीव श्रीवास्तव वीजनल पैनोरमा की साझेदारी और मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग व जनसम्पर्क विभाग के सहयोग से दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा यह दो दिवसीय समारोह आयोजित किया गया था।
दुष्यन्त कुमार अपनी शायरी के जरिए आमदिलों पर आज भी राज करते हैं। उनकी शायरी के ये इन्द्रधनुषी रंग गायकों के कण्ठ से गाहे-बगाहे आबाद होते हैं। एक दफा फिर सामयीन के दरमियान दुष्यन्त की शायरी के तेवर नुमाया हुए। जैसे ही मेहमान फनकार चंदन दास ने दुष्यन्त की आमफहम गज़ल- ‘कहाँ तो तय था चरागां हरेक घर के लिए, कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए’ अपने चिरपरिचित अंदाज में गुनगुनाई तो सभागार तालियों से गंूज उठा। इस महफिल को उन्होंने ‘ चाँदनी छत पे चल रही होगी, फिर धीरे-धीरे मौसम बदलने लगा है’, ‘वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान हैं’, सहित कोई आधा दर्जन से अधिक गज़लें पेश कर यादगार बनाया। इसके साथ ही भोपाल के जाने-माने फनकार गणेशदत्त जोशी, कोंपल दत्त और डाॅ. टी.एन.दुबे ने भी अपनी कण्ठ साधना का सार्थक परिचय दिया। कोंपल ने जहाँ ‘घंटियों की गंूज कानों तक पहंुचती है, इक नदी जैसे दहानों तक पहुंचती है’ पेश की, तो गणेश दत्त जोशी ने ‘नजर नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं, जरा सी बात है मुंह से निकल न जाए कहीं’ तथा ‘मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे, मेरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आएंगे’ के ज़रिए अपने कण्ठ-संस्कार का दिलचस्प परिचय देते रहे तो पेशे से चिकित्सक डाॅ. टी.एन.दुबे ने ‘कहीं पे धूप की चादर बिछाके बैठ गए’ और ‘एक कबूतर चिट्ठी लेकर पहली-पहली बार उड़ा, मौसम हाथ गुलेल लिए था पट-से नीचे आन गिरा’ गज़ले पेश कर अपनी गायकी का चोखा रंग बिखेरा।
दो दिनों तक भोपाल के भारत भवन में आयोजित इस समारोह में राजधानी के साहित्यकारों, कलाप्रेमियों और संगीतप्रेमियों ने बड़ी संख्या में उपस्थिति दर्ज करवाई।

रपट: वसन्त सकरगाये


प्रेषक: संगीता राजुरकर (सहायक निदेशक) दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय एफ-50/17, दक्षिण तात्या टोपे नगर शरद जोशी मार्ग, भोपाल-462003 दूरभाष: 0755 2775129, 9425007710

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